शिव भक्ति
शिव स्तवन
शंकर शशांकशीश शंभु शिव शूलपाणि, शशिशिर शैलजेश शर्व शाम्भवी के पति । कंठ कालकूट काम कदन कपाली काली- कंत करुणाकर कपर्दी है कृपालु अति ।। भूतनाथ भव्य भव भस्मअंग भालज्वाल, भीम भव तारक भवेश भक्त अंतगति। 'चैलहीन चंड चिंत्य 'शुक्ल' चित्त-चिंतामणि, चंद्रचूड़ चारु अंघ्रि युग्म में मदीय रति ।।
शिव भक्ति
भगवान शिव को देवों का देव महादेव कहा गया है। मानव से लेकर दानव और देव तक सभी उनकी पूजा करते हैं। उन्हें प्रसन्न करने के जतन करते हैं। भगवान शिव के विषय में यह भी कहा जाता है कि यह औपचारिकताओं के बजाय भक्त की भावनाओं को अधिक महत्व देते हैं। थोड़े में ही बहुत प्रसन्न हो जाते हैं। इसीलिए उन्हें आशुतोष का नाम भी दिया गया है। यह उनकी महिमा ही है कि आकाश- पाताल सर्वत्र प्रजापति, गंदर्भ, किन्नर, नाग, वसु, यक्ष तथा सभी योनियों के विभिन्न ज्ञात एवं अज्ञात घटकगण भगवान शिव को अपना आराध्य मानते चले आ रहे हैं। प्रभु श्रीराम ने तो शिवद्रोही को अपना परम शत्रु बताया है। 'शिवभक्ति' का परम प्रभाव 'शिवशक्ति' के रूप में रावण को मिला और श्रीराम को भी प्राप्त हुआ। केवल शिवालयों या देवालयों में ही नहीं, शिवतत्व इस शरीर के भीतर भी विद्यमान है। इसे अनुभव करने पर प्राणी में शक्ति का प्रवाह स्वतः होता है।
यही माना जाता है कि हृदय की सच्ची पुकार से भोलेनाथ उस पुकार लगाने वाले पर प्रसन्न हो जाते हैं। जो उनके समीप पहुंच जाता है, वह पूर्ण हो जाता है। तपस्या में लीन भगवान शिव के आसपास तो महाशक्तियों का विशालतम भंडार उपस्थित है। जिसकी जितनी क्षमता हो, उनसे उतना पा लेना अति सरल है। जो भी प्राणी उनके समीप आएगा, वह निराश नहीं हो सकता।
वास्तव में 'शिव' कल्याण के मूर्तमान हैं। 'शिव' सत्य के साकार स्वरूप हैं। परमशक्ति भगवती माता का विश्राम यहीं है। मानव मात्र शिव को समर्पित अपनी वृत्तियों को शांत कर नवीन ऊर्जा प्राप्त करने में सफल हो सकता है। जहां संदेह है, वहां शिव नहीं। जब विश्वास है, स्थिरता है, वहां शिव विद्यमान है। विश्वास ही शिव है, जो सत्य एवं सुंदर है। संसार का आश्रय इसी विश्वास का मूल है और शक्ति के स्रोत का रहस्य भी। वास्तव में, शिव की भक्ति से देह को शक्ति मिलने के साथ ही आत्मा का भी उद्धार हो जाता है।
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